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आया मौसम फिर दल बदलने का...

आया मौसम फिर दल बदलने का...
  आज की राजनीति का रंग-रूप बदल चुका है। यह पहले जैसी नहीं रही। पुराने जमाने के गुजर चुके नेता अगर गलती से दोबारा जिंदा हो जाएं तो ऐसे हालात देखकर अपना सिर पकड़ लें। आज के समय में राजनीति बदली है और बदले की राजनीति भी शुरू हो गई है। पहले दलबदल हुआ करता था, यहां तक तो गनीमत थी। तब का नेता सुबह एक पार्टी में होता था। दोपहर होते-होते पुरानी पार्टी का मैल अंतरात्मा की आवाज के साबुन से रगड़-रगड़ कर छुड़ाता था। फिर अगली सुबह नई पार्टी ज्वाइन करता था। तब राजनीति की भी अपनी कुछ एक मान-मर्यादाएं हुआ करती थीं। किसी नेता की ऐसी हरकत को गिरी निगाहों से देखा जाता था। उसे दलबदलू कहा जाता था। आयाराम-गयाराम की उपाधि से विभूषित किया जाता था। उस नेता की विश्वसनीयता संदिग्ध समझी जाती थी। उसके चरित्र को राजनीति लायक नहीं समझा जाता था। आज की राजनीति में उलटने-पलटने को बुरी नजर से नहीं देखा जाता है। उलटे बुरी नजर से देखने वाले का ही मुंह काला दिखलाई देने लग जाता है।